ईद उल-फ़ित्र


ईद उल-फ़ित्र


ईद उल-फ़ित्र या ईद उल-फितर (अरबी: عيد الفطر) मुस्लमान रमज़ान उल-मुबारक के एक महीने के बाद एक मज़हबी ख़ुशी का त्यौहार मनाते हैं। जिसे ईद उल-फ़ित्र कहा जाता है। ये यक्म शवाल अल-मुकर्रम्म को मनाया जाता है। ईद उल-फ़ित्र इस्लामी कैलेण्डर के दसवें महीने शव्वाल के पहले दिन मनाया जाता है। इसलामी कैलंडर के सभी महीनों की तरह यह भी नए चाँद के दिखने पर शुरू होता है। मुसलमानों का त्योहार ईद मूल रूप से भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्योहार है। इस त्योहार को सभी आपस में मिल के मनाते है और खुदा से सुख-शांति और बरक्कत के लिए दुआएं मांगते हैं। पूरे विश्व में ईद की खुशी पूरे हर्षोल्लास से मनाई जाती है।


आधिकारिक नामअरबीعيد الفطر
ईद उल-फ़ित्र
अनुयायीमुस्लिम
प्रकारइस्लामी
उद्देश्यरमजान के रोजों के बाद का त्यौहार
उत्सवकुटुंब, सामाजिक व सामूहिक दावत, पारंपरिक खाने, इत्र लगाना, नए कपडे पहनना, तोहफ़े देना इत्यादी
अनुष्ठानईद की नमाज़दान धर्म
तिथिशव्वाल
2019 date4 जून [1]
समान पर्वरमदानईद अल-अज़हा
मुसलमानों का त्यौहार ईद रमज़ान का चांद डूबने और ईद का चांद नज़र आने पर उसके अगले दिन चांद की पहली तारीख़ को मनाई जाती है। इसलामी साल में दो ईदों में से यह एक है (दूसरा ईद उल जुहा या बकरीद कहलाता है)। पहला ईद उल-फ़ितर पैगम्बर मुहम्मद ने सन 624 ईसवी में जंग-ए-बदर के बाद मनाया था।

ईद उल फित्र को मनाने का मक्सद ये है कि पूरे महीने अल्लाह के मोमिन बंदे अल्लाह की इबादत करते हैं रोज़ा रखते हैं और क़ुआन करीम QURAN की तिलावत करके अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं जिसका अज्र या मजदूरी मिलने का दिन ही ईद का दिन कहलाता है जिसे उत्सव के रूप में पूरी दुनिया के मुसलमान बडे हर्ष उल्लास से मनाते हैं


सबसे अहम मक्सद एक और है कि इसमें ग़रीबों को फितरा देना वाजिब है जिससे वो लोग जो ग़रीब हैं मजबूर हैं अपनी ईद मना सकें नये कपडे पहन सकें और समाज में एक दूसरे के साथ खुशियां बांट सकें फित्रा वाजिब है उनके ऊपर जो 52.50 तोला चाँदी या 7.50 तोला सोने का मालिक हो अपने और अपनी नाबालिग़ औलाद का सद्कये फित्र अदा करे जो कि ईद उल फितर की नमाज़ा से पहले करना होता है।

ईद भाई चारे का आपसी मेल का तयौहार है इसमें एक दूसरे के दिल में प्यार बढाना और नफरत को मिटाना सबसे ज़रूरी है इसी लिए लोग ईद में गले मिलते हैं

उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है। सिवैया इस त्योहार की सबसे जरूरी खाद्य पदार्थ है जिसे सभी बड़े चाव से खाते हैं।


ईद के दिन मस्जिदों में सुबह की प्रार्थना से पहले हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो दान या भिक्षा दे। इस दान को ज़कात उल-फ़ितर कहते हैं। उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है। सिवैया इस त्योहार की सबसे जरूरी खाद्य पदार्थ है जिसे सभी बड़े चाव से खाते हैं।

ईद के दिन मस्जिदों में सुबह की प्रार्थना से पहले हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो दान या भिक्षा दे। इस दान को ज़कात उल-फ़ितर कहते हैं।

इस ईद में मुसलमान ३० दिनों के बाद पहली बार दिन में खाना खाते हैं। उपवास की समाप्ती की खुशी के अलावा, इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रियादा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त, नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है। और सांप्रदाय यह है कि ईद उल-फ़ित्र के दौरान ही झगड़ों -- ख़ासकर घरेलू झगड़ों -- को निबटाया जाता है।


ईद के दिन मस्जिद में सुबह की प्रार्थना से पहले, हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो दान या भिक्षा दे। इस दान को ज़कात उल-फ़ित्र कहते हैं। यह दान दो किलोग्राम कोई भी प्रतिदिन खाने की चीज़ का हो सकता है, मिसाल के तौर पे, आटा, या फिर उन दो किलोग्रामों का मूल्य भी। से पहले यह ज़कात ग़रीबों में बाँटा जाता है।

अपनी ख़ुशियाँ भूल जा...

अपनी ख़ुशियाँ भूल जा सब का दर्द ख़रीद

'सैफ़ी' तब जा कर कहीं तेरी होगी ईद




ईद आई तुम न आए क्या मज़ा है ईद का

ईद ही तो नाम है इक दूसरे की दीद का



ईद का दिन है...

ईद का दिन है गले आज तो मिल ले ज़ालिम

रस्म-ए-दुनिया भी है मौक़ा भी है दस्तूर भी है



ईद के बा'द वो मिलने के लिए आए हैं

ईद का चाँद नज़र आने लगा ईद के बा'द



कहते हैं ईद है...

कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती

हम को अगर मयस्सर जानाँ की दीद होती




तुझ को मेरी न मुझे तेरी ख़बर जाएगी

ईद अब के भी दबे पाँव गुज़र जाएगी



तुम बिन चाँद न देख सका...

तुम बिन चाँद न देख सका टूट गई उम्मीद

बिन दर्पन बिन नैन के कैसे मनाएँ ईद




देखा हिलाल-ए-ईद तो आया तेरा ख़याल

वो आसमाँ का चाँद है तू मेरा चाँद है


फ़लक पे चाँद सितारे...

फ़लक पे चाँद सितारे निकलने हैं हर शब

सितम यही है निकलता नहीं हमारा चाँद



हासिल उस मह-लक़ा की दीद नही

ईद है और हम को ईद नहीं



है ईद का दिन...

है ईद का दिन आज तो लग जाओ गले से

जाते हो कहाँ जान मिरी आ के मुक़ाबिल




महक उठी है फ़ज़ा पैरहन की ख़ुशबू से

चमन दिलों का खिलाने को ईद आई है



मिल के होती थी...

मिल के होती थी कभी ईद भी दीवाली भी

अब ये हालत है कि डर डर के गले मिलते हैं




वादों ही पे हर रोज़ मिरी जान न टालो

है ईद का दिन अब तो गले हम को लगा लो



है ईद मय-कदे को...

है ईद मय-कदे को चलो देखता है कौन

शहद ओ शकर पे टूट पड़े रोज़ा-दार आज




है ईद का दिन आज तो लग जाओ गले से

जाते हो कहाँ जान मिरी आ के मुक़ाबिल

- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी


बादबाँ नाज़ से...

बादबाँ नाज़ से लहरा के चली बाद-ए-मुराद

कारवाँ ईद मना क़ाफ़िला-सालार आया

By learn Tour education 




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