ईद उल-फ़ित्र
उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है। सिवैया इस त्योहार की सबसे जरूरी खाद्य पदार्थ है जिसे सभी बड़े चाव से खाते हैं।
ईद के दिन मस्जिदों में सुबह की प्रार्थना से पहले हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो दान या भिक्षा दे। इस दान को ज़कात उल-फ़ितर कहते हैं। उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है। सिवैया इस त्योहार की सबसे जरूरी खाद्य पदार्थ है जिसे सभी बड़े चाव से खाते हैं।
ईद के दिन मस्जिदों में सुबह की प्रार्थना से पहले हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो दान या भिक्षा दे। इस दान को ज़कात उल-फ़ितर कहते हैं।
इस ईद में मुसलमान ३० दिनों के बाद पहली बार दिन में खाना खाते हैं। उपवास की समाप्ती की खुशी के अलावा, इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रियादा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी। ईद के दौरान बढ़िया खाने के अतिरिक्त, नए कपड़े भी पहने जाते हैं और परिवार और दोस्तों के बीच तोहफ़ों का आदान-प्रदान होता है। और सांप्रदाय यह है कि ईद उल-फ़ित्र के दौरान ही झगड़ों -- ख़ासकर घरेलू झगड़ों -- को निबटाया जाता है।
ईद के दिन मस्जिद में सुबह की प्रार्थना से पहले, हर मुसलमान का फ़र्ज़ है कि वो दान या भिक्षा दे। इस दान को ज़कात उल-फ़ित्र कहते हैं। यह दान दो किलोग्राम कोई भी प्रतिदिन खाने की चीज़ का हो सकता है, मिसाल के तौर पे, आटा, या फिर उन दो किलोग्रामों का मूल्य भी। से पहले यह ज़कात ग़रीबों में बाँटा जाता है।
अपनी ख़ुशियाँ भूल जा...
अपनी ख़ुशियाँ भूल जा सब का दर्द ख़रीद
'सैफ़ी' तब जा कर कहीं तेरी होगी ईद
ईद आई तुम न आए क्या मज़ा है ईद का
ईद ही तो नाम है इक दूसरे की दीद का
ईद का दिन है...
ईद का दिन है गले आज तो मिल ले ज़ालिम
रस्म-ए-दुनिया भी है मौक़ा भी है दस्तूर भी है
ईद के बा'द वो मिलने के लिए आए हैं
ईद का चाँद नज़र आने लगा ईद के बा'द
कहते हैं ईद है...
कहते हैं ईद है आज अपनी भी ईद होती
हम को अगर मयस्सर जानाँ की दीद होती
तुझ को मेरी न मुझे तेरी ख़बर जाएगी
ईद अब के भी दबे पाँव गुज़र जाएगी
तुम बिन चाँद न देख सका...
तुम बिन चाँद न देख सका टूट गई उम्मीद
बिन दर्पन बिन नैन के कैसे मनाएँ ईद
देखा हिलाल-ए-ईद तो आया तेरा ख़याल
वो आसमाँ का चाँद है तू मेरा चाँद है
फ़लक पे चाँद सितारे...
फ़लक पे चाँद सितारे निकलने हैं हर शब
सितम यही है निकलता नहीं हमारा चाँद
हासिल उस मह-लक़ा की दीद नही
ईद है और हम को ईद नहीं
है ईद का दिन...
है ईद का दिन आज तो लग जाओ गले से
जाते हो कहाँ जान मिरी आ के मुक़ाबिल
महक उठी है फ़ज़ा पैरहन की ख़ुशबू से
चमन दिलों का खिलाने को ईद आई है
मिल के होती थी...
मिल के होती थी कभी ईद भी दीवाली भी
अब ये हालत है कि डर डर के गले मिलते हैं
वादों ही पे हर रोज़ मिरी जान न टालो
है ईद का दिन अब तो गले हम को लगा लो
है ईद मय-कदे को...
है ईद मय-कदे को चलो देखता है कौन
शहद ओ शकर पे टूट पड़े रोज़ा-दार आज
है ईद का दिन आज तो लग जाओ गले से
जाते हो कहाँ जान मिरी आ के मुक़ाबिल
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
बादबाँ नाज़ से...
बादबाँ नाज़ से लहरा के चली बाद-ए-मुराद
कारवाँ ईद मना क़ाफ़िला-सालार आया
By learn Tour education
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